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निम्नलिखित अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) कहलाने एकत बसत, अहि, मयूर, मृग, बाघ। जगतु तपोवन सौं कियो। दीरघ दाघ निदाघ।।
संदर्भ: यह पंक्तियाँ गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ के अरण्यकाण्ड से ली गई हैं। इसमें श्रीराम के वनवास और उनके तपोवन के वर्णन में यह पंक्तियाँ आती हैं।
व्याख्या: इस पंक्ति में कवि तुलसीदास ने भगवान श्रीराम के वनवास के समय के तपोवन का वर्णन किया है। ‘कहलाने एकत बसत, अहि, मयूर, मृग, बाघ’ का अर्थ है कि वहाँ सभी जीव-जन्तु एक साथ मिलकर प्रेमपूर्वक रहते थे, चाहे वह साँप हो, मोर हो, हिरण हो या बाघ। ‘जगतु तपोवन सौं कियो। दीरघ दाघ निदाघ’ का अर्थ है कि श्रीराम के प्रभाव से यह संसार भी तपोवन की तरह हो गया था, जहाँ सभी प्रकार के जीव-जन्तु बिना किसी भय के एक साथ रहते थे।
(ख) बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे। छोड़इत निकट नयन बह नीरे।।
संदर्भ: यह पंक्तियाँ सूरदास द्वारा रचित ‘सूरसागर’ से ली गई हैं, जिसमें श्रीकृष्ण के प्रति उनकी भक्ति और प्रेम का वर्णन है।
व्याख्या: इस पंक्ति में सूरदास ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम और भक्ति को व्यक्त किया है। ‘बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे’ का अर्थ है कि श्रीकृष्ण के समीप रहकर उन्होंने अत्यधिक सुख और आनन्द की अनुभूति की है। ‘छोड़इत निकट नयन बह नीरे’ का अर्थ है कि जब उन्हें श्रीकृष्ण से दूर होना पड़ा, तो उनके नेत्रों से आँसू बहने लगे। इस प्रकार, सूरदास ने अपने प्रेम और भक्ति को शब्दों के माध्यम से व्यक्त किया है।
(ग) यह बिनती रघुवीर गुसांईं और आस विश्वास भरोसो, हरो जीव जड़ताई।
संदर्भ: यह पंक्ति गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ के एक छंद से ली गई है। इसमें भगवान श्रीराम के प्रति भक्त की प्रार्थना और विश्वास का वर्णन है।
व्याख्या: इस पंक्ति में कवि तुलसीदास भगवान श्रीराम से प्रार्थना कर रहे हैं। ‘यह बिनती रघुवीर गुसांईं’ का अर्थ है कि यह प्रार्थना है हे रघुवीर (श्रीराम) भगवान। ‘और आस विश्वास भरोसो’ का अर्थ है कि आपके प्रति आशा, विश्वास और भरोसा है। ‘हरो जीव जड़ताई’ का अर्थ है कि हे भगवान, हमारे जीवन की जड़ता और अज्ञानता को दूर करें। इस प्रकार, यह पंक्ति भगवान श्रीराम के प्रति गहरी आस्था और प्रार्थना को व्यक्त करती है।