मुद्रा से क्या समझते हैं ? इसके कार्यों की विवेचना करें ।

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मुद्रा (Money) अर्थशास्त्र का एक महत्वपूर्ण घटक है, जो वैश्विक और घरेलू व्यापार के संचालन में केंद्रीय भूमिका निभाती है। यह वस्तुओं और सेवाओं के आदान-प्रदान को सरल बनाती है, आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करती है, और संसाधनों के कुशल आवंटन में मदद करती है। सरल शब्दों में, मुद्रा वह माध्यम है जिसे किसी भी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के विनिमय के लिए व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है।


मुद्रा वह साधन है जो किसी वस्तु-विनिमय प्रणाली (Barter System) की जटिलताओं को समाप्त करता है और लेन-देन को आसान बनाता है। वस्तु-विनिमय प्रणाली में दोनों पक्षों को वह वस्तु चाहिए होती है, जो दूसरा व्यक्ति प्रदान करता है, जिससे व्यापार कठिन हो जाता है। मुद्रा के उपयोग से यह समस्या दूर होती है और व्यापार में सहूलियत आती है, क्योंकि इसे हर कोई स्वीकार करता है।

मुद्रा का मूल्य विश्वास और स्वीकृति पर आधारित होता है। स्वयं में यह मूल्यवान नहीं होती, लेकिन जब लोग इसे विनिमय के माध्यम के रूप में मान्यता देते हैं, तब यह मूल्यवान बन जाती है।


मुद्रा के चार प्रमुख कार्य हैं:

मुद्रा व्यापार में एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करती है, जिससे वस्तु-विनिमय प्रणाली की जटिलताओं का समाधान होता है। यह लोगों को वस्तुओं और सेवाओं के बदले एक स्वीकृत माध्यम में भुगतान करने की सुविधा देती है।

उदाहरण: एक व्यक्ति किसी दुकान से किताब खरीदने के लिए सीधे रुपये (मुद्रा) का उपयोग करता है, बजाय किसी वस्तु के बदले लेन-देन करने के।

मुद्रा एक मानकीकृत मूल्य माप प्रदान करती है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों की तुलना करना सरल हो जाता है। इस मानक के बिना, विभिन्न वस्तुओं का मूल्य निर्धारित करना कठिन होता।

उदाहरण: एक कार की कीमत ₹5,00,000 है और एक बाइक की ₹80,000। इस तुलना से उपभोक्ता बेहतर निर्णय ले सकते हैं।

मुद्रा समय के साथ अपने मूल्य को संरक्षित करती है, जिससे लोग भविष्य की आवश्यकताओं के लिए धन को संग्रहित कर सकते हैं। खराब होने वाली वस्तुओं की तुलना में, मुद्रा लंबे समय तक अपनी उपयोगिता बनाए रखती है। हालांकि, मुद्रास्फीति (Inflation) इसके मूल्य को घटा सकती है, इसलिए लोग अक्सर बचत खातों या निवेश साधनों का उपयोग करते हैं।

उदाहरण: एक व्यक्ति ₹10,000 आज बचाकर कुछ महीनों बाद उसका उपयोग वस्त्र या सेवाएँ खरीदने में कर सकता है।

मुद्रा उन लेन-देन को संभव बनाती है जिनमें भुगतान भविष्य में किया जाना हो। यह उधार और ऋण आधारित लेन-देन को सुगम बनाती है, क्योंकि दोनों पक्षों को भरोसा होता है कि भविष्य में भुगतान मान्यता प्राप्त मुद्रा में किया जाएगा।

उदाहरण: कोई व्यक्ति आज ऋण लेकर मासिक किश्तों में भविष्य में इसे चुका सकता है।


मुद्रा अत्यधिक तरल होती है, जिसका अर्थ है कि इसे तुरंत और बिना किसी मूल्य हानि के उपयोग में लाया जा सकता है। जबकि संपत्ति या सोने जैसी अन्य संपत्तियों को नकदी में बदलना पड़ता है, मुद्रा का तुरंत उपयोग किया जा सकता है।

  • वस्तु मुद्रा (Commodity Money): सोना, चांदी जैसी वस्तुएँ, जिनका स्वाभाविक मूल्य होता है।
  • फिएट मुद्रा (Fiat Money): सरकार द्वारा जारी की गई मुद्रा, जिसका कोई स्वाभाविक मूल्य नहीं होता, लेकिन जिसे कानूनी मान्यता प्राप्त होती है (जैसे भारतीय रुपये)।
  • डिजिटल मुद्रा (Digital Money): क्रिप्टोकरेंसी जैसे बिटकॉइन और इलेक्ट्रॉनिक वॉलेट, जो आज के डिजिटल युग में महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं।

मुद्रा आधुनिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। यह व्यापार को सुगम बनाती है, मूल्य मापने का साधन प्रदान करती है, धन को भविष्य के लिए संग्रहित करने में सहायक होती है और ऋण आधारित लेन-देन को संभव बनाती है। समय के साथ मुद्रा के स्वरूप में परिवर्तन आया है, जैसे डिजिटल मुद्रा का बढ़ता उपयोग, लेकिन इसके मूल कार्य वही बने रहे हैं। मुद्रा के महत्व को समझना न केवल हमारी दैनिक जरूरतों के लिए बल्कि अर्थव्यवस्था की व्यापक समझ के लिए भी आवश्यक है।


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