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भारतीय कृषि देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, जो लगभग 40-45% आबादी को रोजगार प्रदान करती है और करोड़ों लोगों की आजीविका का आधार है। हालांकि, सरकार की विभिन्न योजनाओं और आधुनिक तकनीकों के बावजूद, कृषि क्षेत्र कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जैसे कम उत्पादकता, मानसून पर निर्भरता, और वित्तीय अस्थिरता। ये समस्याएँ न केवल आर्थिक प्रगति को बाधित करती हैं, बल्कि किसानों की कठिनाइयों को भी बढ़ाती हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण विकास प्रभावित होता है।

इस असाइनमेंट में हम भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याओं का विश्लेषण करेंगे और उनके समाधान सुझाएंगे, ताकि उत्पादकता, स्थिरता और किसानों की भलाई में सुधार किया जा सके।



  • समस्या: भारत में कृषि भूमि अक्सर पीढ़ियों से बंटवारे के कारण छोटे और बिखरे हुए टुकड़ों में बंट जाती है। इस कारण किसानों के पास सीमित जमीन होती है, जिससे बड़े पैमाने पर खेती करना मुश्किल हो जाता है। बिखरे हुए खेतों में उन्नत तकनीक और आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं रह जाता।
  • प्रभाव: छोटे खेतों में उत्पादकता कम रहती है, और बार-बार हाथ से खेती करना महंगा पड़ता है। साथ ही, किसान अक्सर केवल आत्मनिर्भर खेती करते हैं, जिससे बाजार में फसल का अधिशेष नहीं होता और उनकी आय सीमित रहती है।

  • समस्या: भारतीय कृषि का बड़ा हिस्सा वर्षा-आधारित है, और लगभग 50% कृषि भूमि मानसून पर निर्भर करती है। अगर बारिश समय पर नहीं होती या पर्याप्त नहीं होती, तो फसल खराब हो जाती है और किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। दूसरी ओर, अत्यधिक बारिश के कारण बाढ़ आ जाती है, जिससे फसलों और खेतों को नुकसान होता है।
  • प्रभाव: इस निर्भरता के कारण कृषि अस्थिर और जोखिम भरी हो जाती है। मानसून की अनियमितता और सूखे से उत्पादन प्रभावित होता है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में संकट बढ़ता है और किसानों की आय घटती है।

  • समस्या: भारत में फसल की उत्पादकता वैश्विक मानकों की तुलना में कम है। हालांकि भारत कुछ फसलों (जैसे दालें और मसाले) का सबसे बड़ा उत्पादक है, लेकिन प्रति हेक्टेयर उत्पादन चीन और अमेरिका जैसे देशों की तुलना में बहुत कम है। इसके पीछे पारंपरिक खेती, मिट्टी की कम उर्वरता और उर्वरकों के अनुचित उपयोग जैसी समस्याएँ हैं।
  • प्रभाव: कम उत्पादकता से न केवल किसानों की आय घटती है, बल्कि देश को आवश्यक वस्तुओं का आयात भी करना पड़ता है। किसानों के कठिन परिश्रम के बावजूद उनकी आय संतोषजनक नहीं होती, जिससे ग्रामीण गरीबी और पलायन की समस्या बढ़ती है।

  • समस्या: भारत में कुल कृषि भूमि का लगभग 50% हिस्सा ही सिंचाई के दायरे में है, बाकी भूमि बारिश पर निर्भर करती है। इसके अलावा, किसान अत्यधिक भूजल पर निर्भर होते हैं, जिससे जल संसाधनों का अत्यधिक दोहन होता है। जल प्रबंधन की खराब व्यवस्था, नहरों की अव्यवस्था और वर्षा जल संचयन की कमी इस समस्या को और बढ़ा देती है।
  • प्रभाव: सूखे के मौसम में जल की कमी के कारण फसल उत्पादन घटता है, और कई बार किसान खेती छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं। भूजल के अत्यधिक उपयोग से मृदा लवणता और भूमि की उर्वरता घटती है, जो लंबे समय तक कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।

  • समस्या: कई किसान अब भी पारंपरिक उपकरण जैसे हल और बैलगाड़ी का उपयोग करते हैं, जिससे खेती श्रम-प्रधान और कम उत्पादक होती है। आधुनिक कृषि यंत्र जैसे ट्रैक्टर, हार्वेस्टर और ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग बड़े या धनी किसानों तक ही सीमित है। कृषि अनुसंधान और तकनीकी सहायता की सीमित उपलब्धता भी किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती है।
  • प्रभाव: यंत्रीकरण के अभाव में श्रम लागत बढ़ जाती है, और उत्पादन में कमी आती है। छोटे किसान आधुनिक कृषि तकनीकों का उपयोग नहीं कर पाते, जिससे वे बड़े किसानों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते।

  • समस्या: अधिकांश भारतीय किसानों को औपचारिक वित्तीय सेवाओं तक पर्याप्त पहुँच नहीं मिलती। उन्हें साहूकारों से उधार लेना पड़ता है, जो अत्यधिक ब्याज दरें वसूलते हैं। फसल खराब होने या बाजार में कीमतें गिरने से किसान कर्ज नहीं चुका पाते और कर्ज के जाल में फँस जाते हैं।
  • प्रभाव: कर्ज़ का बोझ बढ़ने से किसानों में मानसिक तनाव बढ़ता है और कई मामलों में वे आत्महत्या तक कर लेते हैं। कर्ज की समस्या के कारण खेती उनके लिए अस्थिर और अलाभकारी व्यवसाय बन जाती है।

  • समस्या: भारत में कृषि उत्पादों के भंडारण के लिए ठंडे भंडारगृहों, गोदामों और परिवहन नेटवर्क की भारी कमी है। इस कारण विशेषकर फल और सब्जियों जैसी जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं में कटाई के बाद नुकसान अधिक होता है।
  • प्रभाव: भंडारण सुविधाओं के अभाव में किसान तुरंत फसल बेचने को मजबूर हो जाते हैं, जिससे उन्हें उचित मूल्य नहीं मिलता। खराब परिवहन व्यवस्था से फसल बर्बाद होती है और किसानों की आय घटती है।



  • समाधान: भूमि सुधार के माध्यम से छोटे भूखंडों को एकीकृत करना और सहकारी खेती को प्रोत्साहित करना आवश्यक है, जहाँ किसान संसाधन साझा करके बड़े पैमाने पर खेती कर सकें।
  • प्रभाव: इससे खेती अधिक कुशल होगी, यंत्रीकरण संभव होगा, और उत्पादकता बढ़ेगी, जिससे किसानों की आय में सुधार होगा।

  • समाधान: ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली जैसी सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों का उपयोग बढ़ाया जाए और वर्षा जल संचयन एवं जलग्रहण विकास को प्रोत्साहित किया जाए।
  • प्रभाव: इससे मानसून पर निर्भरता घटेगी और जल का कुशल उपयोग सुनिश्चित होगा, जिससे उत्पादन में सुधार होगा।

  • समाधान: किसानों को कृषि यंत्रों पर सब्सिडी और ऋण उपलब्ध कराए जाएँ। सटीक कृषि तकनीक को बढ़ावा दिया जाए और अनुसंधान के परिणाम किसानों तक पहुँचाए जाएँ।
  • प्रभाव: आधुनिक तकनीकों से उत्पादन में वृद्धि होगी और श्रम लागत घटेगी, जिससे कृषि अधिक लाभदायक होगी।

  • समाधान: पीएमएफबीवाई (प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना) जैसी योजनाओं के माध्यम से किसानों को बीमा सुरक्षा प्रदान की जाए और औपचारिक वित्तीय सेवाओं की पहुँच बढ़ाई जाए।
  • प्रभाव: इससे किसान साहूकारों पर निर्भर नहीं रहेंगे और कर्ज़ के बोझ से बच सकेंगे। फसल नुकसान की स्थिति में उन्हें आर्थिक सुरक्षा भी मिलेगी।

  • समाधान: कोल्ड स्टोरेज, गोदामों और ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण पर निवेश बढ़ाया जाए।
  • प्रभाव: किसान अपनी फसल को उचित समय तक भंडारित कर सकेंगे और बेहतर मूल्य प्राप्त कर सकेंगे, जिससे उनकी आय बढ़ेगी।

  • समाधान: किसानों को सीधे बाजार से जोड़ने के लिए ई-नाम (राष्ट्रीय कृषि बाजार) जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म को बढ़ावा दिया जाए और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की नीति का प्रभावी क्रियान्वयन हो।
  • प्रभाव: इससे किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिलेगा और बाजार के जोखिमों से राहत मिलेगी।


भारतीय कृषि कई चुनौतियों का सामना कर रही है, जैसे छोटे जोत, जल की कमी, वित्तीय तनाव, और बाजार की अस्थिरता। हालांकि, उचित सुधारों, तकनीकी नवाचारों, अवसंरचना के विकास, और स्थायी प्रथाओं के माध्यम से इन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। एक संतुलित दृष्टिकोण जो आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक स्थिरता सुनिश्चित करे, कृषि क्षेत्र के परिवर्तन के लिए आवश्यक है। यह परिवर्तन न केवल किसानों के जीवन को बेहतर बनाएगा, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था की समग्र वृद्धि और स्थिरता में भी योगदान देगा।


  1. भारत सरकार (2023)। आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23। वित्त मंत्रालय।
  2. datt, R., & Sundharam, K. P. M. (2020)। भारतीय अर्थव्यवस्था। S. Chand Publishing।
  3. कपिला, U. (2019)। भारतीय अर्थव्यवस्था: प्रदर्शन और नीतियाँ। अकादमिक फाउंडेशन।

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