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भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्व की समीक्षा और भारतीय कृषि की समस्याएँ

प्रस्तावना

भारतीय अर्थव्यवस्था एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है, जो विश्व में सबसे अधिक कृषि उत्पादक देशों में से एक है। यहाँ की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है, जो न केवल खाद्य उत्पादन का मुख्य स्रोत है, बल्कि लाखों लोगों की आजीविका भी प्रदान करता है। कृषि न केवल देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान करती है, बल्कि सामाजिक विकास और सांस्कृतिक स्थिरता में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

1. भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्व

1.1 आर्थिक योगदान

  • सकल घरेलू उत्पाद (GDP): भारतीय कृषि का GDP में योगदान लगभग 18-20% है। यह क्षेत्र देश की आर्थिक विकास दर को प्रभावित करता है। कृषि क्षेत्र की वृद्धि से देश की समग्र विकास दर में भी वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए, यदि कृषि उत्पादन में 4% की वृद्धि होती है, तो इसका प्रभाव GDP में लगभग 1% की वृद्धि के रूप में देखा जा सकता है।
  • निर्यात: भारतीय कृषि उत्पादों का निर्यात विदेशी मुद्रा में महत्वपूर्ण योगदान करता है। चावल, गेंहू, चाय, कॉफी, और मसाले जैसे कृषि उत्पाद भारत के प्रमुख निर्यात में शामिल हैं। 2021-22 में कृषि और संबद्ध उत्पादों का निर्यात लगभग 50 बिलियन डॉलर था, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को सशक्त करता है।

1.2 रोजगार सृजन

  • भारतीय कृषि में लगभग 58% कार्यबल कार्यरत है। यह संख्या न केवल किसानों तक सीमित है, बल्कि कृषि आधारित उद्योगों जैसे खाद्य प्रसंस्करण, कृषि मशीनरी, और बीज उत्पादन में भी शामिल है।
  • कृषि क्षेत्र में रोजगार सृजन का प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में स्पष्ट होता है। जैसे-जैसे कृषि गतिविधियाँ बढ़ती हैं, वैसे-वैसे ग्रामीण श्रमिकों के लिए रोजगार के अवसर भी बढ़ते हैं।

1.3 खाद्य सुरक्षा

  • खाद्य सुरक्षा का तात्पर्य है कि सभी लोगों को पर्याप्त, सुरक्षित, और पोषण युक्त खाद्य सामग्री उपलब्ध हो। कृषि क्षेत्र में वृद्धि से खाद्य उत्पादन में वृद्धि होती है, जिससे देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
  • सरकार द्वारा संचालित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) योजनाएँ और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने में मदद करती हैं। इन कार्यक्रमों से गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों को उचित मूल्य पर खाद्य सामग्री उपलब्ध होती है।

1.4 ग्रामीण विकास

  • कृषि विकास का ग्रामीण विकास पर गहरा प्रभाव होता है। कृषि क्षेत्र में वृद्धि से ग्रामीण अवसंरचना, शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होता है।
  • जैसे-जैसे कृषि में निवेश बढ़ता है, वैसे-वैसे किसानों की आय में वृद्धि होती है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की गति को तेज करता है।
  • सहकारी समितियाँ और किसान समूह ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिससे किसान अपनी सामूहिक शक्ति का उपयोग कर सकें।

2. भारतीय कृषि की समस्याएँ

2.1 कृषि तकनीक का अभाव

  • भारत में अधिकांश किसान पारंपरिक कृषि विधियों का पालन करते हैं। आधुनिक कृषि तकनीकों, जैसे ड्रिप इरिगेशन, सटीक कृषि (Precision Agriculture), और जीएम फसलों (Genetically Modified Crops) का उपयोग सीमित है।
  • उदाहरण: कई छोटे किसान फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए उन्नत बीज और उर्वरकों का उपयोग नहीं कर पाते, जिससे कृषि उत्पादकता प्रभावित होती है।

2.2 मौसम पर निर्भरता

  • भारतीय कृषि मुख्य रूप से मानसून पर निर्भर है। वर्षा की अनियमितता, जलवायु परिवर्तन, और मौसम की चरम स्थितियों, जैसे सूखा और बाढ़, ने कृषि उत्पादन को प्रभावित किया है।
  • उदाहरण: 2019 में देश के कई हिस्सों में अतिवृष्टि के कारण फसलों का नुकसान हुआ, जिससे किसानों को भारी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा।

2.3 भूमि विभाजन और छोटे खेत

  • भारत में भूमि का विभाजन और छोटे खेतों की समस्या प्रमुख है। छोटे और सीमांत किसान अपने खेतों पर आर्थिक रूप से टिकाऊ उत्पादन करने में असमर्थ होते हैं।
  • छोटे खेतों की कमी से कृषि उत्पादकता घटती है, और किसानों को अपने खर्चे उठाने में कठिनाई होती है। भारत में औसत कृषि भूमि का आकार घटकर 1.08 हेक्टेयर रह गया है, जो कुशलता और उत्पादन को प्रभावित करता है।

2.4 बाजार असमानता

  • किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। कई बार बिचौलिए किसानों से फसल खरीदते हैं और उन्हें बाजार में अधिक मूल्य पर बेचते हैं।
  • सरकार द्वारा बनाए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कार्यान्वयन में भी कई समस्याएँ होती हैं, जिससे किसान लाभ नहीं उठा पाते। कई किसान MSP के लाभ से वंचित रह जाते हैं, क्योंकि उन्हें अपनी फसल बेचने के लिए बाजार में जाना पड़ता है।

2.5 ऋण और वित्तीय संकट

  • कई किसान खेती के लिए आवश्यक पूंजी जुटाने के लिए उच्च ब्याज वाले निजी ऋणों पर निर्भर होते हैं। यदि फसल की कीमतें गिरती हैं या प्राकृतिक आपदाएँ आती हैं, तो किसान ऋण चुकता करने में असमर्थ हो जाते हैं।
  • इसके परिणामस्वरूप, किसानों में आत्महत्या की घटनाएँ बढ़ रही हैं। 2019 में, भारत में 10,349 किसानों ने आत्महत्या की, जो कि एक गंभीर सामाजिक समस्या है।

2.6 सरकारी नीतियों की कमी

  • कई बार सरकारी नीतियों का सही तरीके से कार्यान्वयन नहीं होता। जैसे कि फसल बीमा योजनाएँ और कृषि विकास योजनाएँ कई किसानों तक नहीं पहुँच पातीं।
  • नीति निर्माताओं को किसानों की वास्तविक जरूरतों को समझने और उनके अनुसार नीतियाँ बनाने की आवश्यकता है। साथ ही, नीतियों के कार्यान्वयन में पारदर्शिता और जिम्मेदारी सुनिश्चित करनी चाहिए।

2.7 पर्यावरणीय चुनौतियाँ

  • भारतीय कृषि में अधिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • जल संसाधनों की कमी और भूमि के विखंडन ने कृषि उत्पादन में स्थिरता को प्रभावित किया है।

3. कृषि में सुधार के उपाय

3.1 तकनीकी नवाचार

  • आधुनिक कृषि तकनीकों का उपयोग बढ़ाना चाहिए। ड्रिप इरिगेशन, सटीक कृषि, और उन्नत बीजों का उपयोग किसानों की उत्पादकता को बढ़ा सकता है।
  • सरकार को अनुसंधान और विकास (R&D) में निवेश बढ़ाना चाहिए, जिससे नए कृषि तकनीकों को विकसित किया जा सके।

3.2 वित्तीय साक्षरता

  • किसानों को वित्तीय साक्षरता के कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे उन्हें उचित वित्तीय साधनों और ऋणों के बारे में जानकारी मिल सकेगी।
  • बैंक और वित्तीय संस्थानों को किसानों को कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

3.3 स्थायी कृषि प्रथाएँ

  • कृषि में स्थायी प्रथाओं को अपनाना चाहिए, जैसे जैविक खेती, जिससे मिट्टी की उर्वरता और पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा हो सके।
  • जल संसाधनों के प्रबंधन और संरक्षण के लिए भी प्रभावी नीतियाँ बनाई जानी चाहिए।

3.4 बाजार प्रणाली में सुधार

  • किसानों को सीधे बाजार में पहुँचाने के लिए उचित नीतियाँ बनाई जानी चाहिए। इससे उन्हें उचित मूल्य प्राप्त होगा और बिचौलियों की भूमिका कम होगी।
  • कृषि उत्पादों की विपणन प्रणाली को पारदर्शी और कुशल बनाने के लिए तकनीक का उपयोग किया जा सकता है।

निष्कर्ष

भारतीय कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, जिसका प्रभाव न केवल आर्थिक विकास पर, बल्कि सामाजिक स्थिरता और खाद्य सुरक्षा पर भी पड़ता है। हालाँकि, भारतीय कृषि कई समस्याओं का सामना कर रही है, जैसे तकनीक का अभाव, मौसम पर निर्भरता, बाजार असमानता, और ऋण संकट। इन समस्याओं के समाधान के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जिसमें कृषि तकनीक, ऋण सुलभता, और सरकारी नीतियों का सुधार शामिल हो। केवल तभी हम एक मजबूत और आत्मनिर्भर कृषि प्रणाली का निर्माण कर सकेंगे, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिरता प्रदान करेगी।

संदर्भ

  1. भारतीय कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट
  2. भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण
  3. विश्व बैंक और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की रिपोर्टें
  4. विभिन्न आर्थिक पत्रिकाएँ और शोध पत्र

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