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परिचय
भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे बड़ी और विविध अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। यह पारंपरिक कृषि और आधुनिक उद्योगों का मिश्रण है, जिसमें आर्थिक सुधारों के बाद तेज़ी से वृद्धि हुई है। 1.4 अरब से अधिक की आबादी वाला भारत, एक मिश्रित अर्थव्यवस्था है, जिसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र दोनों का योगदान है। यह असमानता, जनसंख्या दबाव, और रोजगार जैसी चुनौतियों का सामना करते हुए भी स्थिरता और विकास की ओर बढ़ रहा है। इस असाइनमेंट में भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं पर विस्तार से चर्चा की गई है।
1. मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy)
भारत एक मिश्रित अर्थव्यवस्था है, जिसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र दोनों का सहयोग है। सरकारी संस्थाएँ स्वास्थ्य, बुनियादी ढाँचे और सामाजिक सेवाओं में प्रमुख भूमिका निभाती हैं, जबकि निजी क्षेत्र आईटी, विनिर्माण और सेवा उद्योगों का नेतृत्व करता है।
- सार्वजनिक क्षेत्र: रेलवे, रक्षा और ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर नियंत्रण रखता है।
- निजी क्षेत्र: नवाचार और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करता है, विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी और उपभोक्ता वस्तुओं में।
2. कृषि का प्रभुत्व लेकिन घटता योगदान (Agricultural Dominance but Declining Contribution)
कृषि, भारत की अर्थव्यवस्था का पारंपरिक आधार रही है और लगभग 40-45% कार्यबल को रोजगार देती है। हालांकि, इसका सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में योगदान घट रहा है, जबकि सेवा और उद्योग क्षेत्रों का विस्तार हो रहा है।
- GDP में कृषि का योगदान: लगभग 16-18%।
- महत्व: कृषि खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण रोजगार के लिए महत्वपूर्ण है।
- सरकारी योजनाएँ: PM-किसान और विभिन्न सब्सिडी योजनाएँ कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए चलाई जा रही हैं।
3. सेवा क्षेत्र का तीव्र विकास (Rapid Growth of the Services Sector)
भारत का सेवा क्षेत्र GDP का सबसे बड़ा हिस्सा है, जो लगभग 55-60% का योगदान देता है। इसमें सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी), वित्तीय सेवाएँ, रियल एस्टेट, शिक्षा और पर्यटन शामिल हैं।
- आईटी उद्योग का योगदान: भारत विश्व स्तर पर आईटी और बीपीओ सेवाओं के लिए प्रसिद्ध है।
- रोज़गार में योगदान: शहरी क्षेत्रों में सेवा क्षेत्र बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा कर रहा है।
4. जनसांख्यिकीय लाभ (Demographic Dividend)
भारत में युवा जनसंख्या की हिस्सेदारी अधिक है, जिसकी औसत आयु लगभग 29 वर्ष है। यह आर्थिक विकास के लिए एक बड़ी संभावना है, बशर्ते युवाओं को शिक्षा और रोजगार के अवसर प्रदान किए जाएँ।
- कार्यबल की भागीदारी: एक बड़ी श्रम शक्ति अर्थव्यवस्था में योगदान करती है।
- चुनौतियाँ: जनसांख्यिकीय लाभ का उपयोग करने के लिए कौशल विकास और रोज़गार के अवसर उत्पन्न करना आवश्यक है।
5. विशाल अनौपचारिक क्षेत्र (Large Informal Sector)
भारत की अर्थव्यवस्था में अनौपचारिक क्षेत्र का बड़ा हिस्सा है, जिसमें सड़क विक्रेता, छोटे उद्योग और कृषि श्रमिक शामिल हैं। यह क्षेत्र औपचारिक अनुबंधों और सामाजिक सुरक्षा से वंचित है।
- योगदान: लगभग 90% कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है।
- सरकारी प्रयास: ई-श्रम पोर्टल के माध्यम से अनौपचारिक श्रमिकों को पंजीकृत कर उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जा रही है।
6. जनसंख्या दबाव (Heavy Population Pressure)
भारत की विशाल जनसंख्या संसाधनों, बुनियादी ढाँचे और जीवन स्तर पर दबाव डालती है।
- चुनौतियाँ: उच्च जनसंख्या वृद्धि शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोज़गार पर बोझ डालती है।
- अवसर: एक बड़ा घरेलू बाज़ार उद्योगों के लिए एक मज़बूत उपभोक्ता आधार प्रदान करता है।
7. आर्थिक असमानताएँ (Economic Inequalities)
भारत में आय और धन की असमानता एक प्रमुख चुनौती है। जहाँ शहरी क्षेत्र तेज़ी से प्रगति कर रहे हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्र बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं।
- शहरी-ग्रामीण विभाजन: शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में बेहतर सुविधाएँ और उच्च आय है।
- धन का असमान वितरण: देश की संपत्ति का बड़ा हिस्सा एक छोटे वर्ग के पास है।
8. बेरोज़गारी और अल्परोज़गारी (Unemployment and Underemployment)
अर्थव्यवस्था में विकास के बावजूद बेरोज़गारी और अल्परोज़गारी बनी हुई है। कई लोग या तो बेरोज़गार हैं या कम वेतन वाले नौकरियों में लगे हैं।
- बेरोज़गारी के प्रकार:
- संरचनात्मक बेरोज़गारी: कौशल और नौकरियों के बीच असंतुलन।
- मौसमी बेरोज़गारी: कृषि में मौसम विशेष के अनुसार काम उपलब्ध होता है।
- छुपी हुई बेरोज़गारी (Disguised Unemployment): अधिक लोग रोजगार में लगे होते हैं, लेकिन उनकी उत्पादकता कम होती है।
9. आयात पर निर्भरता (Dependence on Imports)
भारत कई आवश्यक वस्तुओं जैसे कच्चे तेल, मशीनरी और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए आयात पर निर्भर है। तेल आयात पर निर्भरता, वैश्विक कीमतों के उतार-चढ़ाव से अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है।
- व्यापार घाटा: भारत का आयात, निर्यात से अधिक होता है।
- स्वदेशी उत्पादन का प्रोत्साहन: “मेक इन इंडिया” जैसी योजनाएँ घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही हैं।
10. आर्थिक सुधार और उदारीकरण (Economic Reforms and Liberalization)
1991 के बाद भारत ने आर्थिक सुधारों को अपनाया, जिनसे उदारीकरण, निजीकरण और विदेशी निवेश को बढ़ावा मिला।
- प्रभाव: इन सुधारों से तेज़ी से विकास हुआ और निजी क्षेत्र तथा विदेशी निवेश में वृद्धि हुई।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): आईटी, दूरसंचार और विनिर्माण में महत्वपूर्ण विदेशी निवेश आकर्षित हुआ।
11. क्षेत्रीय असंतुलन (Regional Imbalances)
भारत में विभिन्न राज्यों के बीच आर्थिक असमानता देखी जाती है। महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्य औद्योगिक रूप से उन्नत हैं, जबकि बिहार और ओडिशा जैसे राज्य विकास की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
- असमानता के कारण: संसाधनों, नीतियों और प्रशासन में अंतर।
- सरकारी हस्तक्षेप: संतुलित क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देने के लिए विशेष योजनाएँ चलाई जा रही हैं।
12. सतत विकास पर ध्यान (Focus on Sustainable Development)
जलवायु परिवर्तन के प्रति बढ़ती चिंताओं के साथ, भारत सतत विकास को प्राथमिकता दे रहा है। सरकार नवीकरणीय ऊर्जा, हरित प्रौद्योगिकी और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा दे रही है।
- सौर और पवन ऊर्जा: भारत सौर ऊर्जा उत्पादन में अग्रणी है।
- जलवायु लक्ष्य: भारत ने 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन प्राप्त करने का संकल्प लिया है।
13. वैश्विक एकीकरण (Global Integration)
भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक अर्थव्यवस्था से गहराई से जुड़ी हुई है, जिसमें व्यापार, निवेश और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण शामिल हैं। भारत WTO और BRICS का सदस्य है और वैश्विक आर्थिक मंचों में सक्रिय भूमिका निभाता है।
- निर्यात क्षेत्र: प्रमुख निर्यात में आईटी सेवाएँ, दवाएँ, वस्त्र और वाहन शामिल हैं।
- चुनौतियाँ: वैश्विक आर्थिक उतार-चढ़ाव और भू-राजनीतिक तनाव भारत की आर्थिक स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं।
निष्कर्ष
भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्रों का एक गतिशील और विविधतापूर्ण मिश्रण है। 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद इसमें उल्लेखनीय प्रगति हुई है। हालाँकि, बेरोज़गारी, आय असमानता और क्षेत्रीय असंतुलन जैसी चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं। युवा जनसंख्या, बढ़ते उद्योग और सतत विकास पर ध्यान देने के साथ, भारत के पास भविष्य में तीव्र आर्थिक विकास की अपार संभावनाएँ हैं। दीर्घकालिक समृद्धि प्राप्त करने के लिए आर्थिक सुधारों, सामाजिक समानता और पर्यावरणीय स्थिरता के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
संदर्भ
- दत्त, आर., & सुंदरम, के.पी.एम. (2020). भारतीय अर्थव्यवस्था. एस. चंद पब्लिशिंग।
- कपिला, यू. (2019). भारतीय अर्थव्यवस्था: प्रदर्शन और नीतियाँ. एकेडमिक फाउंडेशन।
- भारत सरकार (2023). आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23. वित्त मंत्रालय।