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प्रस्तावना

“भिक्षुक” हिंदी साहित्य के महान कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की एक महत्वपूर्ण कविता है, जो उनकी मानवीय संवेदनाओं और समाज के प्रति उनकी गहरी चिंता को दर्शाती है। निराला अपनी रचनाओं में समाज के उपेक्षित, गरीब और शोषित वर्ग के प्रति विशेष सहानुभूति रखते थे, और यह कविता भी इसी संवेदना का जीवंत चित्रण है। “भिक्षुक” में उन्होंने एक भिखारी के माध्यम से समाज की बेरुखी, असमानता और संवेदनहीनता का मार्मिक चित्रण किया है। इस कविता में गरीबी और भूख की पीड़ा को अत्यंत प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया गया है, जिससे पाठक का मन भी करुणा और संवेदना से भर उठता है।


“भिक्षुक” कविता में निराला ने एक ऐसे भिखारी की करुण कथा को प्रस्तुत किया है, जो भूख और दरिद्रता से त्रस्त होकर समाज के दरवाजों पर भिक्षा माँगने जाता है। उसकी आँखों में भूख और लाचारी की छाया स्पष्ट झलकती है। उसका थका-हारा शरीर और कमजोर काया इस बात का प्रतीक है कि समाज ने उसे न केवल भौतिक रूप से, बल्कि मानवीय गरिमा से भी वंचित कर दिया है।

भिखारी लोगों के घर-घर जाकर भिक्षा माँगता है, लेकिन उसे हर जगह उपेक्षा और तिरस्कार ही मिलता है। लोग उसे दुत्कारते हैं, उसे अपमानित करते हैं और कभी-कभी बिना कुछ दिए ही भगा देते हैं। समाज की यह असंवेदनशीलता उस भिखारी की असहायता को और भी बढ़ा देती है। उसकी आँखों में एक मौन प्रार्थना है—भोजन की तलाश, लेकिन उसे किसी के हृदय में करुणा नहीं मिलती।

कविता में निराला ने भिखारी के माध्यम से उस वर्ग का चित्रण किया है, जो समाज में सबसे अधिक उपेक्षित है। भिक्षुक न केवल पेट भरने के लिए, बल्कि मानवीय सम्मान और सहानुभूति की भी याचना करता है। लेकिन उसे हर ओर से केवल तिरस्कार और निराशा ही हाथ लगती है। उसकी बेबस स्थिति और समाज की बेरुखी इस बात का प्रतीक है कि समाज केवल अपनी सुविधा और स्वार्थ की सोचता है, और गरीबों के प्रति संवेदनशील नहीं है।


कविता में भूख की पीड़ा को अत्यंत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। भिखारी का पूरा अस्तित्व केवल भोजन की तलाश में सिमट गया है। निराला ने भिक्षुक की हालत को इस तरह प्रस्तुत किया है कि पाठक स्वयं उसकी पीड़ा को महसूस करता है। उसकी फटी हुई झोली और थका-हारा चेहरा भूख की भयावहता और समाज की उपेक्षा को प्रत्यक्ष रूप से प्रकट करते हैं।


निराला ने समाज की उस मानसिकता पर तीखा प्रहार किया है, जो गरीब और भूखों के प्रति असंवेदनशील हो चुकी है। भिक्षुक की आँखों में करुणा की याचना है, लेकिन लोग उसे अपमानित कर भगा देते हैं। इस कविता के माध्यम से निराला यह संदेश देना चाहते हैं कि समाज को अपने से कमजोर और उपेक्षित लोगों के प्रति दया और करुणा का भाव रखना चाहिए।


“भिक्षुक” कविता की भाषा सरल, प्रभावी और भावनाओं से भरी हुई है। निराला ने इसमें सूक्ष्म चित्रण और मार्मिकता का सहारा लिया है। भिखारी की स्थिति का वर्णन अत्यंत यथार्थवादी है, जिससे पाठक के मन में करुणा उत्पन्न होती है। कविता में मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है, जो निराला की रचनात्मकता और स्वतंत्रता का प्रतीक है।


“भिक्षुक” कविता केवल एक भिखारी की कहानी नहीं है, बल्कि यह समाज के उपेक्षित और शोषित वर्ग के प्रति समाज की संवेदनहीनता को भी उजागर करती है। निराला इस कविता के माध्यम से हमें यह संदेश देते हैं कि हमें दूसरों के प्रति करुणा और संवेदनशीलता रखनी चाहिए। मनुष्य की वास्तविक पहचान उसकी संपत्ति या पद से नहीं, बल्कि उसकी करुणा और प्रेम से होती है।


“भिक्षुक” कविता हिंदी साहित्य में निराला की करुणा-प्रधान रचनाओं में से एक है। इसमें भूख, गरीबी, और समाज की संवेदनहीनता का जीवंत चित्रण है। इस कविता के माध्यम से निराला ने समाज के कमजोर और उपेक्षित वर्ग के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट की है और पाठकों को संवेदनशील बनने का संदेश दिया है। यह कविता आज भी प्रासंगिक है और हमें उन लोगों की पीड़ा समझने की प्रेरणा देती है, जिन्हें हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं।

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