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जलवायु परिवर्तन और मानव समुदायों पर इसका प्रभाव
परिचय:
जलवायु परिवर्तन पृथ्वी के तापमान और सामान्य मौसम पैटर्नों में दीर्घकालिक परिवर्तन को दर्शाता है। यह मानव गतिविधियों, विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण होता है। जलवायु परिवर्तन का हमारे ग्रह और उस पर रहने वाले लोगों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ रहा है।
मानव समुदायों पर प्रभाव:
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: जलवायु परिवर्तन से गर्मी से संबंधित बीमारियों, वायु प्रदूषण, पानी की कमी और संक्रामक रोगों में वृद्धि हो रही है।
- जीविका पर प्रभाव: यह कृषि, मछली पकड़ने और पर्यटन जैसी आजीविका को बाधित कर रहा है, जिससे खाद्य असुरक्षा और आर्थिक कठिनाई पैदा हो रही है।
- जल संसाधनों पर प्रभाव: सूखे, बाढ़ और समुद्र के स्तर में वृद्धि जल संसाधनों को कम और दूषित कर रही है, जिससे पानी की कमी और पानी से संबंधित संघर्ष हो रहा है।
- अवसंरचना पर प्रभाव: तूफान, बाढ़ और समुद्र के स्तर में वृद्धि तटीय क्षेत्रों, सड़कों, पुलों और अन्य बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा रही है।
- विस्थापन और संघर्ष: जलवायु परिवर्तन लोगों को उनके घरों से विस्थापित कर रहा है, जिससे सामाजिक अशांति और संघर्ष बढ़ रहा है।
उच्च जोखिम वाले समुदाय:
- विकसनशील देश: विकसित देशों की तुलना में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अधिक असुरक्षित हैं, जिनके पास अनुकूलन के लिए कम संसाधन हैं।
- महिलाएं और बच्चे: ये समूह जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक प्रभावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं।
- स्वदेशी समुदाय: जलवायु परिवर्तन उनकी पारंपरिक जीवन शैली और संस्कृतियों को खतरा है।
अनुकूलन और शमन:
- अनुकूलन: इसमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने और उनसे बचने के लिए समुदायों और प्रणालियों को तैयार करना शामिल है। इसमें समुद्री दीवारों का निर्माण, सूखा प्रतिरोधी फसलों को विकसित करना और प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों में सुधार करना शामिल हो सकता है।
- शमन: इसमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके जलवायु परिवर्तन को धीमा या रोकना शामिल है। इसमें नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर स्विच करना, ऊर्जा दक्षता में सुधार करना और वनों की कटाई को कम करना शामिल हो सकता है।
निष्कर्ष:
जलवायु परिवर्तन एक गंभीर खतरा है जो मानव समुदायों को पहले से ही प्रभावित कर रहा है। इसके प्रभावों को कम करने के लिए तत्काल और ठोस कार्रवाई की आवश्यकता है। हमें अनुकूलन और शमन दोनों रणनीतियों में निवेश करने और जलवायु-अनुकूल समाजों का निर्माण करने के लिए मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए भारत द्वारा किए गए प्रयास
भारत जलवायु परिवर्तन के खतरे को कम करने के लिए सक्रिय रूप से कदम उठा रहा है। 2015 में पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाला पहला देश होने के नाते, भारत ने अपनी राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के तहत 2030 तक अपने उत्सर्जन को 33-35% तक कम करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है।
इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, भारत ने कई नीतियां और कार्यक्रम लागू किए हैं, जिनमें शामिल हैं:
- नवीकरणीय ऊर्जा: भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, जैसे सौर, पवन और पनबिजली में भारी निवेश किया है। देश का लक्ष्य 2030 तक 40% बिजली नवीकरणीय स्रोतों से उत्पन्न करना है।
- ऊर्जा दक्षता: भारत ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के लिए कई पहलों को लागू कर रहा है, जैसे कि अधिक कुशल उपकरणों और भवनों के लिए मानक स्थापित करना और उद्योगों में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना।
- वनीकरण: भारत ने वनों की कटाई को कम करने और वन क्षेत्रों को बढ़ाने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं। देश का लक्ष्य 2030 तक अपने वन क्षेत्र को 33% तक बढ़ाना है।
- अनुकूलन: भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल होने के लिए भी काम कर रहा है, जैसे कि सूखा प्रतिरोधी फसलों को विकसित करना, तटीय क्षेत्रों में समुद्री दीवारों का निर्माण करना और जल संसाधनों का प्रबंधन करना।
भारत के प्रयासों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्यता दी गई है। 2019 में, भारत को जलवायु कार्रवाई पर अग्रणी देशों में से एक के रूप में नामित किया गया था।
हालांकि, अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। भारत को अपने उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल होने के लिए अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को और मजबूत करने की आवश्यकता है।
यहां कुछ विशिष्ट उदाहरण दिए गए हैं कि भारत जलवायु परिवर्तन का मुकाबला कैसे कर रहा है:
- सौर ऊर्जा: भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा सौर ऊर्जा उत्पादक है। देश ने 2025 तक 100 गीगावाट सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा है।
- पवन ऊर्जा: भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा पवन ऊर्जा उत्पादक भी है। देश ने 2025 तक 60 गीगावाट पवन ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा है।
- इलेक्ट्रिक वाहन: भारत इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने को बढ़ावा दे रहा है। देश का लक्ष्य 2030 तक सभी वाहनों को इलेक्ट्रिक या हाइब्रिड बनाना है।
- स्मार्ट ग्रिड: भारत स्मार्ट ग्रिड विकसित करने में निवेश कर रहा है जो नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को एकीकृत करने में मदद करेगा।
- जैव ईंधन: भारत जैव ईंधन के उत्पादन और उपयोग को बढ़ावा दे रहा है।
निष्कर्ष:
भारत जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है। हालांकि, अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। भारत को अपने उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल होने के लिए अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को जारी रखने और मजबूत करने की आवश्यकता है। यह तभी संभव होगा जब सरकार, उद्योग और नागरिक मिलकर काम करेंगे।