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कीन्स की रोजगार सिद्धांत की विस्तृत व्याख्या
प्रस्तावना
जॉन मेनार्ड कीन्स, एक प्रसिद्ध ब्रिटिश अर्थशास्त्री, ने 20वीं सदी के मध्य में अपनी रोजगार सिद्धांत को प्रस्तुत किया। उनकी विचारधारा ने आर्थिक संकट, बेरोजगारी, और समग्र मांग के संबंध में गहरा प्रभाव डाला। कीन्स ने यह सिद्धांत 1936 में अपनी पुस्तक “The General Theory of Employment, Interest and Money” में प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे सरकारी नीतियाँ और समग्र मांग बेरोजगारी को नियंत्रित कर सकते हैं।
1. समग्र मांग (Aggregate Demand)
1.1 परिभाषा
- समग्र मांग, किसी अर्थव्यवस्था में सभी वस्तुओं और सेवाओं की कुल मांग को दर्शाती है। इसमें उपभोक्ता खर्च, निवेश, सरकारी खर्च, और शुद्ध निर्यात (निर्यात – आयात) शामिल होते हैं।
1.2 कीन्स का दृष्टिकोण
- कीन्स ने तर्क किया कि समग्र मांग में कमी के कारण बेरोजगारी बढ़ती है। जब उपभोक्ता और व्यवसाय कम खर्च करते हैं, तो कंपनियाँ उत्पादन घटाती हैं, जिससे नौकरियों में कटौती होती है।
1.3 तत्व
- उपभोक्ता खर्च (C): उपभोक्ताओं द्वारा की जाने वाली खरीदारी, जो समग्र मांग का प्रमुख घटक है।
- निवेश (I): व्यवसायों द्वारा किया जाने वाला निवेश, जो उत्पादन क्षमता को बढ़ाता है।
- सरकारी खर्च (G): सरकार द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों और परियोजनाओं पर खर्च।
- शुद्ध निर्यात (NX): विदेशों से आय और आयात का अंतर।
2. नौकरी और निवेश
2.1 निवेश का महत्व
- कीन्स के अनुसार, कंपनियों का निवेश अर्थव्यवस्था में नौकरी सृजन का एक महत्वपूर्ण कारक है। उच्च निवेश से उत्पादन में वृद्धि होती है, जिससे अधिक कामकाजी अवसर बनते हैं।
2.2 निवेश का निर्धारण
- कीन्स ने यह सुझाव दिया कि निवेश का स्तर भविष्य की मांग की अपेक्षाओं पर निर्भर करता है। यदि कंपनियों को लगता है कि भविष्य में मांग बढ़ेगी, तो वे अधिक निवेश करेंगी।
2.3 नियोक्ता का दृष्टिकोण
- नियोक्ता तभी नए कर्मचारियों को काम पर रखते हैं जब उन्हें विश्वास होता है कि उनकी उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की मांग में वृद्धि होगी। इसके लिए, कीन्स ने कहा कि आवश्यक है कि समग्र मांग को बढ़ाया जाए।
3. पैसा और ब्याज दर
3.1 ब्याज दरों का महत्व
- ब्याज दरें निवेश के निर्णयों को प्रभावित करती हैं। जब ब्याज दरें उच्च होती हैं, तो कंपनियों के लिए उधार लेना महंगा हो जाता है, जिससे वे कम निवेश करती हैं।
3.2 कीन्स का दृष्टिकोण
- कीन्स ने कहा कि केन्द्रीय बैंक को ब्याज दरों को नियंत्रित करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कंपनियाँ निवेश के लिए प्रेरित हों।
3.3 मौद्रिक नीति
- मौद्रिक नीति के तहत, यदि ब्याज दरें घटती हैं, तो यह सस्ता उधार लेने को प्रोत्साहित करती हैं, जिससे निवेश और रोजगार में वृद्धि होती है।
4. सम्पूर्ण रोजगार (Full Employment)
4.1 सम्पूर्ण रोजगार की परिभाषा
- सम्पूर्ण रोजगार वह स्थिति है जहाँ सभी योग्य श्रमिकों को रोजगार मिलता है, और केवल सामयिक बेरोजगारी होती है।
4.2 कीन्स का सिद्धांत
- कीन्स ने यह बताया कि सम्पूर्ण रोजगार केवल बाजार की स्वाभाविक प्रक्रिया द्वारा नहीं हासिल किया जा सकता। इसके लिए सरकारी हस्तक्षेप आवश्यक है।
4.3 सरकारी नीतियाँ
- कीन्स ने सुझाव दिया कि सरकार को एक सक्रिय नीतिगत दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जैसे कि सार्वजनिक कार्यों में निवेश, ताकि समग्र मांग को बढ़ाया जा सके और रोजगार के अवसर उत्पन्न किए जा सकें।
5. कीन्स की नीति सिफारिशें
5.1 सरकारी खर्च में वृद्धि
- कीन्स ने कहा कि आर्थिक संकट के दौरान सरकार को खर्च बढ़ाना चाहिए, जैसे कि अवसंरचना परियोजनाएँ, जिससे रोजगार में वृद्धि हो।
5.2 करों में कमी
- उन्होंने करों में कमी की सिफारिश की, ताकि उपभोक्ताओं के पास अधिक Disposable Income हो सके, जिससे वे अधिक खर्च कर सकें।
5.3 मौद्रिक नीति
- कीन्स ने मौद्रिक नीति को भी रोजगार सिद्धांत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना। उन्होंने कहा कि केन्द्रीय बैंक को ब्याज दरों को नियंत्रित करना चाहिए ताकि निवेश को प्रोत्साहित किया जा सके।
6. आलोचना
6.1 लंबी अवधि के प्रभाव
- कुछ अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि कीन्स का दृष्टिकोण केवल लघु अवधि के लिए प्रभावी है। दीर्घकालिक विकास के लिए अन्य कारकों का ध्यान रखना आवश्यक है।
6.2 मौद्रिक नीति की सीमाएँ
- मौद्रिक नीति के प्रभावशीलता पर भी सवाल उठाए गए हैं, क्योंकि कुछ स्थितियों में ब्याज दरों में कमी करने के बावजूद निवेश नहीं बढ़ता है।
6.3 सामाजिक प्रभाव
- कई आलोचकों का कहना है कि कीन्स के दृष्टिकोण में सामाजिक असमानताओं को नजरअंदाज किया गया है, जो आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण कारक है।
निष्कर्ष
कीन्स की रोजगार सिद्धांत ने आर्थिक नीति और विचारधारा में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाया। उनकी विचारधारा ने यह स्पष्ट किया कि समग्र मांग का प्रबंधन और सरकारी हस्तक्षेप बेरोजगारी को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह सिद्धांत आज भी आधुनिक आर्थिक नीतियों में एक महत्वपूर्ण आधार के रूप में कार्य करता है, विशेष रूप से आर्थिक संकट के समय में।
संदर्भ
- कीन्स, जॉन मेनार्ड. “The General Theory of Employment, Interest and Money.”
- भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण
- विभिन्न आर्थिक पत्रिकाएँ और शोध पत्र