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अशोक के अभिलेख: वर्गीकरण, प्राप्तिस्थान और ऐतिहासिक महत्व
प्रस्तावना:
मौर्य सम्राट अशोक (268-232 ईसा पूर्व) भारतीय इतिहास के सबसे महान शासकों में से एक थे। उनका शासनकाल राजनीतिक स्थिरता और धार्मिक सहिष्णुता के लिए जाना जाता है। कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने हिंसा का परित्याग कर बौद्ध धर्म अपनाया और अपने अभिलेखों के माध्यम से धर्म, नैतिकता (धम्म), और प्रजा के कल्याण का प्रचार किया। इन अभिलेखों को पढ़कर हम मौर्यकालीन प्रशासन, सामाजिक व्यवस्था और धार्मिक सिद्धांतों की झलक प्राप्त करते हैं।
इस लेख में हम अशोक के अभिलेखों के वर्गीकरण, उनकी सामग्री, प्राप्तिस्थान और ऐतिहासिक महत्व को विस्तार से समझेंगे।
अशोक के अभिलेखों का वर्गीकरण
अशोक के अभिलेखों को चार मुख्य वर्गों में विभाजित किया गया है:
1. शिलालेख (Rock Edicts):
अशोक के प्रमुख आदेश और नीतियाँ पत्थरों और चट्टानों पर खुदवाई गई थीं। इन शिलालेखों के माध्यम से अशोक ने अपनी प्रजा को नैतिक जीवन का पालन करने, धर्मों के बीच सहिष्णुता रखने और करुणा को अपनाने का संदेश दिया। शिलालेखों में नैतिक शिक्षाओं के साथ-साथ अशोक की विदेश नीति और प्रशासनिक व्यवस्था का भी उल्लेख है।
प्रमुख शिलालेखों का वर्गीकरण:
- प्रथम से चौदहवें शिलालेख (Major Rock Edicts):
ये अभिलेख अशोक के साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों में पाए गए हैं। प्रत्येक शिलालेख में अलग-अलग नीतियों और सिद्धांतों का उल्लेख है: - प्रथम शिलालेख: पशु बलि और मांसाहार पर नियंत्रण।
- दूसरा शिलालेख: जनकल्याण योजनाएँ, जैसे चिकित्सा सेवाएँ।
- तीसरा शिलालेख: धम्म के अनुयायियों को प्रोत्साहित करना।
- चौथा शिलालेख: धर्म का पालन और हिंसा का त्याग।
- पाँचवां शिलालेख: विभिन्न अधिकारियों की नियुक्ति और उनका कर्तव्य।
- लघु शिलालेख (Minor Rock Edicts):
ये अभिलेख अशोक के व्यक्तिगत विचारों और उनके धर्म-परिवर्तन से संबंधित हैं। इनमें अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने और अपने अनुयायियों से धम्म का प्रचार करने का आह्वान मिलता है।
प्रमुख स्थान:
- गिरनार (गुजरात)
- धौली और जौगड़ (ओडिशा)
- सोपारा (महाराष्ट्र)
2. स्तंभ-लेख (Pillar Edicts):
अशोक के स्तंभ पूरे साम्राज्य में स्थापित किए गए थे ताकि उनकी नीतियाँ प्रजा तक पहुँच सकें। इन स्तंभों पर उत्कीर्ण अभिलेख मुख्य रूप से धम्म के प्रचार, प्रजा के कल्याण, और प्रशासनिक नीतियों से संबंधित हैं।
प्रमुख स्तंभ-लेखों का वर्णन:
- प्रथम से सातवाँ स्तंभ-लेख: इनमें नैतिकता, धर्म और सामाजिक व्यवहार से जुड़े नियम बताए गए हैं।
- दिल्ली-टोपरा स्तंभ: इसमें अशोक के धम्म के प्रचार का वर्णन है।
- सारनाथ का स्तंभ: यहाँ अशोक के आदेश का उल्लेख है जिसमें हर धर्म के प्रति सहिष्णुता रखने का संदेश दिया गया है।
विशेषता:
अशोक स्तंभों पर सिंह की मूर्तियाँ बनाई गईं, जो उनकी शक्ति और नैतिकता का प्रतीक हैं। सारनाथ का सिंह स्तंभ आज भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है।
प्रमुख स्थल:
- सारनाथ (उत्तर प्रदेश)
- लौरिया नंदनगढ़ (बिहार)
- दिल्ली (फिरोज शाह कोटला)
3. गुहालेख (Cave Inscriptions):
गुफाओं में मिले अभिलेख अशोक द्वारा अजिवक संप्रदाय के मुनियों को दी गई सुविधाओं से संबंधित हैं। इन अभिलेखों में गुफाओं के निर्माण और मुनियों को दिए गए दान का उल्लेख मिलता है। ये अभिलेख अशोक के धार्मिक सहिष्णुता और सभी संप्रदायों के प्रति सम्मान को दर्शाते हैं।
प्रमुख स्थल:
- बराबर की गुफाएँ (बिहार): यहाँ चार गुफाओं में अशोक और उनके पुत्र दशरथ द्वारा अभिलेख उत्कीर्ण कराए गए हैं।
4. लघु-शिलालेख (Minor Inscriptions):
लघु-शिलालेखों में अशोक के व्यक्तिगत विचार और बौद्ध धर्म के प्रति उनकी निष्ठा का उल्लेख मिलता है। इन अभिलेखों में अशोक ने स्वयं को “धम्म का अनुयायी” बताया है।
प्रमुख स्थल:
- मास्की (कर्नाटक): यहाँ अशोक का नाम पहली बार स्पष्ट रूप से उत्कीर्ण किया गया है।
- भाब्रू शिलालेख (राजस्थान): इसमें अशोक की निष्ठा बौद्ध धर्म के प्रति स्पष्ट रूप से प्रकट होती है।
अभिलेखों के प्राप्ति-स्थल
अशोक के अभिलेख पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं। इसके अतिरिक्त, कुछ अभिलेख नेपाल, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में भी मिले हैं, जो उस समय मौर्य साम्राज्य की विशालता को दर्शाते हैं।
मुख्य अभिलेख स्थलों की सूची:
- गिरनार (गुजरात) – मुख्य शिलालेख
- धौली और जौगड़ (ओडिशा) – नैतिकता का प्रचार
- सारनाथ (उत्तर प्रदेश) – सिंह स्तंभ
- लौरिया नंदनगढ़ (बिहार) – स्तंभ-लेख
- बराबर गुफाएँ (बिहार) – गुहालेख
- मास्की (कर्नाटक) – अशोक का नाम
- फिरोज शाह कोटला (दिल्ली) – स्तंभ-लेख
- सोपारा (महाराष्ट्र) – शिलालेख
अशोक के अभिलेखों का ऐतिहासिक महत्व
- प्रशासनिक नीतियों की जानकारी:
अभिलेखों से पता चलता है कि अशोक ने अपने राज्य में धर्माधारित शासन किया और जनता के कल्याण को प्राथमिकता दी। - धार्मिक सहिष्णुता:
अशोक ने सभी धर्मों को समान सम्मान दिया और धार्मिक सहिष्णुता का संदेश फैलाया। - बौद्ध धर्म का प्रचार:
अशोक के अभिलेख बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को व्यापक रूप से फैलाने में सहायक रहे। उनके माध्यम से बौद्ध धर्म का प्रसार श्रीलंका, अफगानिस्तान, और दक्षिण-पूर्व एशिया तक हुआ। - भाषा और लिपि का विकास:
अशोक के अभिलेखों में कई भाषाएँ (प्राकृत, संस्कृत, ग्रीक, अरमाइक) और लिपियाँ (ब्राह्मी, खरोष्ठी) प्रयोग की गईं। इससे तत्कालीन समाज में भाषाओं के विकास का पता चलता है। - राष्ट्रीय एकता का संदेश:
अशोक के अभिलेख एक साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों में एक ही प्रकार का संदेश फैलाते हैं, जो राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक समन्वय का प्रतीक है।
मानचित्र पर अभिलेख स्थलों का प्रदर्शन
अभिलेखों के प्रमुख स्थलों को दर्शाने के लिए आप निम्नलिखित स्थानों को मानचित्र पर चिन्हित कर सकते हैं:
- गिरनार (गुजरात)
- धौली और जौगड़ (ओडिशा)
- सारनाथ (उत्तर प्रदेश)
- लौरिया नंदनगढ़ (बिहार)
- फिरोज शाह कोटला (दिल्ली)
- मास्की (कर्नाटक)
- सोपारा (महाराष्ट्र)
निष्कर्ष:
अशोक के अभिलेख न केवल उनके शासनकाल की नीतियों और धर्मों के प्रति दृष्टिकोण को प्रकट करते हैं, बल्कि तत्कालीन समाज की स्थिति, भाषाई विविधता और सांस्कृतिक समन्वय की जानकारी भी प्रदान करते हैं। ये अभिलेख भारतीय इतिहास के अध्ययन का महत्वपूर्ण स्रोत हैं और आज भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि वे नैतिकता, सहिष्णुता और करुणा का संदेश देते हैं।
अशोक के अभिलेख केवल प्राचीन शिल
ालेख नहीं हैं, बल्कि वे एक ऐसे शासक की सोच को दर्शाते हैं, जिसने युद्ध और हिंसा का त्याग कर धर्म और मानवता की राह अपनाई। इन अभिलेखों का अध्ययन हमें बेहतर समाज के निर्माण की प्रेरणा देता है।